एक गरीब मज़दूर और एक लालची सेठ

 कहानी: एक गरीब मज़दूर और एक लालची सेठ

(शिक्षा: लालच बुरी बला है)

1. गाँव की ज़िंदगी

यह कहानी एक छोटे से गाँव रामपुर की है, जहाँ हर कोई अपने काम में व्यस्त था। गाँव में एक गरीब मज़दूर रहता था जिसका नाम था रामू। रामू ईमानदार, मेहनती और संतोषी स्वभाव का व्यक्ति था। वह रोज़ाना सुबह उठकर गाँव में छोटे-मोटे काम करता, खेतों में मजदूरी करता और दिन भर की मेहनत के बाद जो कुछ भी कमाता, उसी से अपने परिवार का पेट पालता।

वहीं गाँव में एक और व्यक्ति था, जिसका नाम था सेठ धर्मीलाल। वह गाँव का सबसे अमीर और सबसे लालची आदमी था। उसके पास कई खेत, दुकानें और नौकर थे। परंतु उसे कभी संतोष नहीं होता था। वह हर समय यही सोचता कि कैसे और पैसा कमाया जाए, चाहे किसी का नुकसान ही क्यों न हो।


2. रामू की ईमानदारी

एक बार की बात है, रामू को खेत में काम करते हुए एक पुराना मिट्टी का घड़ा मिला। जब उसने उसे खोला तो वह हैरान रह गया — उसमें सोने के सिक्के थे! रामू पहले तो डर गया, फिर सोचा — "यह धन मेरा नहीं है, यह किसी और का है। मुझे इसे वापस करना चाहिए।"

रामू वह घड़ा लेकर सीधा सेठ धर्मीलाल के पास गया क्योंकि वह खेत उसी का था।

रामू ने कहा,

"सेठ जी, यह घड़ा आपके खेत में मिला है। इसमें सोने के सिक्के हैं। यह आपका धन है।"

सेठ पहले तो चौंका, फिर लालच से उसकी आँखें चमक उठीं। उसने रामू से घड़ा ले लिया और मुस्कराते हुए बोला,

"अरे वाह रामू! तुम तो बहुत ईमानदार हो। चलो, मैं तुम्हें इनाम में एक रुपया देता हूँ।"

रामू ने विनम्रता से कहा,

"सेठ जी, मुझे किसी इनाम की जरूरत नहीं, बस मुझे संतोष है कि मैंने सही काम किया।"


3. लालच का बीज

उस रात सेठ धर्मीलाल की नींद उड़ गई। वह सोचने लगा — "अगर मेरे खेत में ऐसा एक घड़ा मिला है, तो जरूर वहाँ और भी छुपे खज़ाने होंगे। मुझे पूरे खेत को खुदवाना चाहिए।"

अगले दिन सेठ ने अपने नौकरों को बुलाया और खेत खुदवाना शुरू किया। कई दिन तक खुदाई होती रही, लेकिन और कुछ नहीं मिला। अब सेठ ने सोचा — “कहीं रामू ने बाकी धन छुपा तो नहीं लिया?”


4. झूठा इल्ज़ाम

सेठ ने गाँव के चौकीदार से मिलकर रामू के खिलाफ शिकायत की और कहा,

"रामू ने मेरे खेत से मिले धन में चोरी की है। उसने सब सिक्के नहीं लौटाए। मुझे शक है उसने बाकी गाड़ दिए हैं।"

चौकीदार रामू को पकड़कर पंचायत में ले गया। गाँव की पंचायत बैठी। सब रामू को ईमानदार जानते थे, लेकिन सेठ बहुत प्रभावशाली था।

सेठ ने गुस्से में कहा,

"अगर यह निर्दोष है, तो अपने हाथ भगवान की कसम खाकर कहे कि उसने एक भी सिक्का नहीं लिया।"

रामू ने हाथ जोड़कर कहा,

"मैं कसम खाता हूँ, मैंने एक भी सिक्का नहीं रखा। जो मिला था, सब लौटा दिया।"

पंचायत ने सब बातें सुनकर रामू को निर्दोष घोषित कर दिया, लेकिन सेठ का दिल अब भी शक से भरा हुआ था।


5. परमात्मा की योजना

कुछ दिन बीते। अब रामू रोज़ अपने काम पर जाने लगा, लेकिन उसे काम मिलने में मुश्किल हो रही थी। सेठ ने गाँव वालों से कह दिया था कि रामू भरोसेमंद नहीं है। रामू की हालत दिन-ब-दिन खराब होने लगी। उसके पास खाने को कुछ नहीं बचा।

एक दिन, थक-हारकर रामू ने मंदिर में भगवान से प्रार्थना की,

"हे प्रभु, मैंने हमेशा सच का साथ दिया, फिर भी मुझे ही सज़ा मिली। अब मुझसे सहा नहीं जाता।"

मंदिर के पुजारी ने रामू को ढाढ़स बंधाया और कहा,

"बेटा, ईमानदारी की परीक्षा हमेशा कठिन होती है, लेकिन उसका फल मीठा होता है। धैर्य रखो।"


6. सेठ का पतन

कुछ महीनों बाद, सेठ धर्मीलाल के घर में चोरी हो गई। लाखों की संपत्ति चोरी हो गई। नौकर भाग गए। खेतों में सूखा पड़ गया, और व्यापार में घाटा हो गया। देखते ही देखते सेठ की हालत गरीब से भी बदतर हो गई।

गाँव वाले कहते,

"ये उसी लालच और झूठे इल्ज़ाम का फल है। भगवान सब देखते हैं।"

सेठ अब गरीब हो चुका था। उसे खाने तक को मोहताज होना पड़ा।


7. करुणा और क्षमा

एक दिन सेठ धर्मीलाल रामू के घर गया — अब वह स्वयं एक मज़दूर बन चुका था। उसने रोते हुए कहा,

"रामू भाई, मुझसे बहुत गलती हुई। मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया। मुझे क्षमा करो।"

रामू ने बिना कोई शिकायत किए, उसे बैठाया, पानी पिलाया और बोला,

"सेठ जी, मैं आपको पहले ही क्षमा कर चुका हूँ। हम सब इंसान हैं, और गलती किसी से भी हो सकती है।"

सेठ ने सिर झुकाया और कहा,

"आज समझ आया कि असली दौलत पैसा नहीं, ईमानदारी और इंसानियत है।"


कहानी से सीख (Moral of the Story):

"लालच इंसान को अंधा बना देता है, जबकि ईमानदारी और धैर्य अंत में विजयी होते हैं।"

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