असली बल - नैतिक कहानी

असली बल

असली बल नैतिक कहानी


बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में दो भाई रहते थे -सुरेश और विजय। दोनों दिखने में बलशाली थे और गाँव में अपनी ताकत के लिए प्रसिद्ध थे। लेकिन जहाँ सुरेश अपनी बुद्धिमत्ता पर विश्वास करता था, वहीं विजय केवल शारीरिक बल को ही असली शक्ति मानता था।


एक दिन गाँव के राजा ने घोषणा की कि जो कोई भी राज्य के पहाड़ के शिखर पर चढ़कर वहाँ रखे हुए शंख को लाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। यह शंख विशेष था, कहा जाता था कि यह सौभाग्य और अपार धन देने की शक्ति रखता था।  


विजय ने तुरंत घोषणा की, "मैं इस कार्य को अकेले पूरा करूँगा, क्योंकि मैं सबसे शक्तिशाली हूँ!"


सुरेश ने उसे रोकते हुए कहा, "भाई, केवल बल ही काफी नहीं होता। हमें बुद्धि और धैर्य भी चाहिए। चलो, हम दोनों मिलकर इस काम को करें!"


लेकिन विजय ने उसकी बात नहीं मानी और अकेले ही पहाड़ की ओर चल पड़ा।


पहाड़ की चढ़ाई कठिन थी। रास्ते में गहरी खाई, काँटों से भरी झाड़ियाँ और खतरनाक जानवर थे। विजय केवल अपने बल के भरोसे आगे बढ़ता गया, लेकिन वह जल्दी ही थक गया।  


जब वह एक गहरी खाई के पास पहुँचा, तो उसे महसूस हुआ कि बिना किसी सहायता के वह इसे पार नहीं कर सकता। लेकिन उसने अपनी बुद्धि का उपयोग करने के बजाय अपनी ताकत से ही इसे पार करने की कोशिश की और फिसल गया।  

इस बीच, सुरेश ने गाँव के कुछ लोगों से सलाह ली, एक मजबूत रस्सी और पुल बनाने का उपाय खोजा, और धीरे-धीरे लेकिन सुरक्षित रूप से आगे बढ़ा।  


जब सुरेश पहाड़ की चोटी पर पहुँचा, तो उसने देखा कि विजय वहाँ बेहोश पड़ा था। उसने अपने भाई की मदद की, उसे पानी दिया और धीरे-धीरे वापस गाँव की ओर ले आया।  


राजा ने देखा कि सुरेश न केवल शंख लेकर आया था, बल्कि अपने भाई की भी जान बचाई थी।  


राजा ने घोषणा की, "असली ताकत केवल शारीरिक बल में नहीं होती, बल्कि बुद्धि, धैर्य और सहायता करने की क्षमता में भी होती है!"


विजय को अब समझ आ चुका था कि शक्ति केवल बाहरी नहीं होती, बल्कि भीतर की समझ और सहनशीलता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है।  


सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि केवल शारीरिक बल ही नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, धैर्य और सहयोग भी असली ताकत होती है। जो व्यक्ति इन सभी गुणों को अपनाता है, वही जीवन में सफलता पाता है।

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