सच्ची दोस्ती का उपहार - नैतिक कहानी

सच्ची दोस्ती का उपहार

सच्ची दोस्ती का उपहार - नैतिक कहानी

घने जंगल में एक चतुर लोमड़ी, एक मेहनती कछुआ, और एक नटखट खरगोश रहते थे। तीनों अच्छे दोस्त थे, लेकिन खरगोश हमेशा अपनी तेज़ दौड़ने की ताकत पर गर्व करता और कछुए की धीमी गति का मज़ाक उड़ाता।  


एक दिन जंगल के राजा, बूढ़े सिंह ने घोषणा की कि जो कोई भी नदी के पार स्थित दुर्लभ फल लेकर आएगा, उसे एक अनमोल उपहार मिलेगा। खरगोश खुशी से कूद पड़ा, "मैं सबसे तेज़ हूँ! मैं आसानी से नदी पार कर लूँगा।"  


खरगोश दौड़ते-दौड़ते नदी तक पहुँचा, लेकिन वहाँ तेज़ बहाव था। वह कूदने ही वाला था, जब लोमड़ी चिल्लाई, "रुको! यह खतरनाक हो सकता है। हमें कछुए की मदद लेनी चाहिए।" खरगोश हँसा, "कछुआ? वह तो बहुत धीमा है!"  


लेकिन कछुए ने मुस्कुराकर कहा, "मेरी धीमी चाल से कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं आसानी से पानी में तैर सकता हूँ।" लोमड़ी और खरगोश कछुए की पीठ पर बैठ गए, और धीरे-धीरे लेकिन सुरक्षित रूप से वे नदी पार कर गए।  


वे तीनों मिलकर दुर्लभ फल लेकर लौटे। सिंह ने उन्हें देखकर कहा, "तुमने अपनी खूबियों को मिलाकर एक-दूसरे की मदद की। यही सच्ची दोस्ती है!" और फिर उन्हें एक सुंदर सुनहरी मूर्ति उपहार में दी।  


खरगोश ने शर्म से सिर झुका लिया और कछुए से माफी माँगी। उसने सीखा कि हर किसी की अपनी विशेषता होती है, और सच्ची दोस्ती ताकत और समझदारी से बनती है।  


शिक्षा:

हमें दूसरों की खूबियों की कद्र करनी चाहिए और मिलकर काम करना चाहिए, क्योंकि सच्ची दोस्ती में ही असली ताकत होती है।

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