आलसी गधा
(एक प्रेरणादायक नैतिक कहानी)
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम था रामप्रसाद। वह बहुत मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था। वह अपने व्यापार के लिए रोज़ सुबह उठकर अपने माल को एक छोटे से कस्बे में बेचने जाता था। उसका एक पालतू गधा था, जिसका नाम था “बीरू”।
बीरू एक सुंदर लेकिन बहुत ही आलसी गधा था। रामप्रसाद ने उसे बचपन से पाला था और वह उसे अपने बेटे की तरह चाहता था। शुरू-शुरू में बीरू काम के प्रति उत्साहित था। वह खुशी-खुशी रामप्रसाद के साथ जाता, माल ढोता और समय पर वापस आता। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, बीरू ने धीरे-धीरे काम से जी चुराना शुरू कर दिया।
आलस की शुरुआत
एक दिन रामप्रसाद ने देखा कि बीरू चलने में बहुत सुस्ती कर रहा है। वह हर कुछ कदमों पर रुक जाता, घास खाने लगता और मुँह बनाकर बैठ जाता।
रामप्रसाद ने प्यार से कहा, "बीरू, तुम थके नहीं हो, अभी तो हम चले ही हैं। चलो बेटा, देर हो रही है।"
बीरू ने धीरे से मुँह हिलाया और अनमने ढंग से आगे बढ़ा। ऐसा कई दिन तक चलता रहा। बीरू रोज़ कुछ न कुछ बहाना बनाता — कभी पैर दर्द, कभी भूख, कभी थकावट।
रामप्रसाद को चिंता होने लगी। "अगर बीरू ऐसे ही करता रहा तो मेरा व्यापार ठप पड़ जाएगा," उसने सोचा।
अब बीरू ने आलसीपन में एक और चालाकी जोड़ ली। वह रास्ते में जानबूझकर नाले के पास गिर जाता ताकि उसका मालिक उसे काम से छुट्टी दे दे।
एक दिन उसने चालाकी से ऐसा किया कि नाले के पास गिर पड़ा और हिनहिनाते हुए दिखाया कि उसका पैर मुड़ गया है। रामप्रसाद घबरा गया। उसने गधे को कुछ देर आराम कराया और फिर खाली लौट आया।
"पता नहीं, बीरू को क्या हो गया है," रामप्रसाद ने गाँव के वैद्य को भी बुलाया। वैद्य ने देखा और कहा, "कोई गंभीर चोट नहीं है, बस थोड़ा आराम दे दो।"
पर रामप्रसाद को कहाँ पता था कि बीरू ने उसे धोखा दिया है।
नए गधे की खोज
कुछ दिन ऐसे ही बीते। रामप्रसाद का धंधा ठप होने लगा। उसकी आमदनी कम हो गई। अब उसके पास केवल दो ही विकल्प थे — या तो बीरू को सुधारो, या नया गधा लो।
रामप्रसाद का दिल बीरू को छोड़ने को नहीं कर रहा था, लेकिन व्यापार भी ज़रूरी था। अंततः उसने गाँव के मेले से एक नया जवान और मेहनती गधा खरीदा। उसका नाम रखा “शेरू”।
शेरू बिल्कुल विपरीत था। वह काम के लिए हमेशा तैयार रहता, तेज़ चलता और कभी थकता नहीं।
अब रामप्रसाद रोज़ शेरू के साथ बाजार जाने लगा। व्यापार फिर से अच्छा चलने लगा।
ईर्ष्या और पछतावा
बीरू को जब शेरू के बारे में पता चला, तो पहले तो उसने सोचा, “चलो अच्छा है, अब मुझे काम नहीं करना पड़ेगा।” लेकिन धीरे-धीरे उसे अहसास हुआ कि अब रामप्रसाद का सारा प्यार और ध्यान शेरू की ओर चला गया है।
पहले रामप्रसाद बीरू के लिए रोज़ ताज़ा घास लाता था, उसे प्यार से सहलाता था, लेकिन अब वह सब शेरू को मिलने लगा। बीरू को अब न कोई पूछता था, न प्यार करता था।
एक दिन उसने देखा कि रामप्रसाद शेरू के सिर पर हाथ फेरते हुए कह रहा था, “तुम्हारे आने से मेरा घर फिर से चल पड़ा बेटा। तुम जैसे मेहनती साथी की ही ज़रूरत थी मुझे।”
यह सुनकर बीरू की आँखों में आँसू आ गए। उसे अपनी गलती का अहसास होने लगा।
“मैंने तो रामप्रसाद की मेहनत और प्यार की कद्र ही नहीं की,” उसने सोचा। “मैंने तो केवल आराम करने की सोची, लेकिन अब मैं अकेला रह गया हूँ।”
बदलाव की शुरुआत
अगले दिन, बीरू ने खुद चलकर रामप्रसाद के पास जाने की ठानी। वह लंगड़ाते हुए उसके पास गया और उसकी आँखों में आँसू आ गए।
रामप्रसाद ने देखा तो चौंक गया, “बीरू! तुम खुद चलकर आए?”
बीरू ने अपनी गर्दन झुका दी, जैसे वह अपनी गलती मान रहा हो।
रामप्रसाद समझ गया कि अब बीरू सच में पछता रहा है। उसने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “अगर तुम सच में बदलना चाहते हो, तो मैं तुम्हें एक और मौका दूँगा।”
बीरू खुशी-खुशी हिनहिनाया और अगले ही दिन शेरू के साथ चलने को तैयार हो गया।
मेहनत का फल
अब बीरू पूरी लगन से काम करने लगा। वह पहले की तरह बहाने नहीं बनाता, ना ही रास्ते में रुकता। धीरे-धीरे उसने अपनी खोई हुई इज्जत और रामप्रसाद का प्यार वापस पा लिया।
रामप्रसाद ने उसे फिर से अपना सबसे प्रिय साथी मान लिया। अब वह शेरू और बीरू दोनों के साथ व्यापार करता और दो गुना मुनाफा कमाने लगा।
गाँव वालों को सीख
गाँव के लोगों ने भी देखा कि कैसे एक आलसी गधा मेहनती बन गया। वे अपने बच्चों को बीरू की कहानी सुनाकर सिखाने लगे कि:
"काम से जी चुराने वाला कभी सफल नहीं होता, लेकिन जो अपनी गलती मानकर मेहनत करे, उसे दूसरा मौका ज़रूर मिलता है।"
नैतिक शिक्षा:
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आलस इंसान (या जानवर) को पीछे धकेल देता है।
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ईमानदारी और मेहनत ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
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गलती मान लेना और सुधार करना साहस का काम है।
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जो मेहनत करता है, वही प्यार और सम्मान पाता है।

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