चुनमुन गौरैया
एक बार की बात है, एक हरे-भरे गांव में, जहाँ चारों ओर हरियाली और छोटे-छोटे तालाब थे, वहाँ एक नन्ही सी गौरैया रहती थी। उसका नाम चुनमुन था। चुनमुन एक बहुत ही चुलबुली, समझदार और मेहनती चिड़िया थी। वह पूरे जंगल में अपनी फुर्ती और बुद्धिमत्ता के लिए मशहूर थी।
गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका था। चुनमुन ने देखा कि जंगल के पेड़ों के पत्ते सूखने लगे थे और पानी के स्रोत भी धीरे-धीरे कम हो रहे थे। उसने सोचा, _"अगर इसी तरह पानी कम होता रहा, तो हमें बहुत परेशानी होगी!"_ इसलिए उसने ठान लिया कि वह पहले से ही अनाज और पानी का संग्रह करेगी ताकि आने वाले कठिन समय में दिक्कत न हो।
दिन-रात मेहनत करके चुनमुन ने छोटे-छोटे दाने जमा किए, और अपने घोंसले के पास एक सुरक्षित जगह पर अनाज और पानी का भंडार बनाया। उसने अपने दोस्तों—तोता, खरगोश और गिलहरी—से भी कहा कि वे भी अपने लिए अनाज और पानी जमा कर लें। लेकिन सभी ने हंसते हुए कहा, _"चुनमुन, इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? अभी तो बहुत पानी और खाना है, हम बाद में देख लेंगे!"
कुछ ही दिनों बाद, जंगल में भीषण गर्मी पड़ने लगी। तालाब सूख गए, और खाने के लिए अनाज भी कम होने लगा। अब तोता, खरगोश और गिलहरी भूख-प्यास से बेहाल होने लगे। वे सब जगह खाने और पानी की तलाश में घूमते रहे लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला।
वे बहुत परेशान थे। अब उन्हें चुनमुन की बात याद आई, जो उसने पहले कही थी—अभी से अनाज और पानी जमा कर लो! लेकिन अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा था।
जब चुनमुन ने देखा कि उसके दोस्त मुसीबत में हैं, तो वह उनके पास गई और बोली,
"मैंने पहले ही कहा था कि हमें पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए। लेकिन कोई मेरी बात मानने को तैयार नहीं था!"
तोता, खरगोश और गिलहरी ने शर्मिंदा होकर कहा, _"चुनमुन, तुम बिल्कुल सही कह रही थी। हमें तुम्हारी सलाह माननी चाहिए थी। अब हम भूख-प्यास से परेशान हैं। क्या तुम हमारी मदद कर सकती हो?
चुनमुन का दिल बहुत बड़ा था। उसने बिना देर किए अपने दोस्तों को अनाज और पानी दिया। उसके दोस्त बहुत खुश हुए और उसकी अच्छाई के लिए धन्यवाद दिया।
सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि
समय रहते अगर हम मेहनत और तैयारी कर लें, तो आने वाली मुश्किलों का सामना आसानी से कर सकते हैं। कभी भी आलसी बनकर भविष्य की चिंताओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
परिश्रम और दूरदृष्टि ही सफलता की कुंजी है!
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