असली दौलत - नैतिक कहानी

असली दौलत

असली दौलत - नैतिक कहानी


पुराने समय की बात है। एक समृद्ध शहर के किनारे एक छोटा सा गाँव बसा था। वहाँ एक व्यापारी धनराज रहता था, जो अत्यंत धनी था लेकिन उतना ही अहंकारी भी। उसके पास भव्य महल, असंख्य सोने-चाँदी के सिक्के और अनगिनत नौकर-चाकर थे। फिर भी, वह कभी किसी की मदद नहीं करता था और केवल अपने धन पर घमंड करता रहता था।  


एक दिन, एक वृद्ध साधु उस गाँव में आया। वह भूखा और कमजोर था। उसने धनराज से भोजन माँगा, लेकिन व्यापारी ने उसे अपमानित करते हुए कहा, "तुम्हारी मेहनत ही तुम्हें खाना देगी। मुफ्त का भोजन मांगना सही नहीं!"  


साधु मुस्कराया और कहा, "धनराज, तुमने बहुत धन कमाया है, लेकिन असली दौलत क्या है, यह तुम नहीं जानते।"  


धनराज हँस पड़ा, "असली दौलत मेरे पास है- सोना, चाँदी, और मेरे विशाल व्यापार।"  


साधु ने शांत स्वर में कहा, "यदि यही असली दौलत होती, तो तुम सबसे सुखी होते। पर क्या तुम वास्तव में खुश हो?"  


धनराज को साधु की बात सुनकर क्रोध आ गया। उसने साधु को भगा दिया और अपने व्यापार में लग गया।  


कुछ वर्षों बाद, एक भयंकर तूफान आया। पानी की बाढ़ ने शहर को तबाह कर दिया। धनराज का विशाल महल बह गया, उसकी दुकानें नष्ट हो गईं, और उसका पूरा व्यापार खत्म हो गया। वह सड़क पर आ गया। अब उसके पास कोई धन नहीं बचा था।  


एक दिन, जब वह भूखा और परेशान बैठा था, वही वृद्ध साधु वहाँ आया। उसने धनराज को रोटी दी और कहा, "धनराज, असली दौलत वही होती है, जो विपत्ति में भी तुम्हारे साथ रहे- तुम्हारी अच्छाई, तुम्हारा ज्ञान, और लोगों के साथ तुम्हारा व्यवहार। यदि तुमने लोगों की मदद की होती, तो आज तुम अकेले नहीं होते।"  


नैतिक शिक्षा

धनराज को अहसास हुआ कि असली दौलत सिर्फ सोना-चाँदी नहीं होती, बल्कि सच्चे दोस्त, अच्छे कर्म और समाज की सेवा ही इंसान की सबसे बड़ी पूंजी होती है। उसने फैसला किया कि अब वह अपनी बची हुई जिंदगी लोगों की भलाई में लगाएगा।  


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