श्रम का फल - नैतिक कहानी

श्रम का फल

श्रम का फल - नैतिक कहानी


बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में रामू नामक एक गरीब किसान रहता था। उसकी ज़मीन उर्वर नहीं थी, और बारिश भी समय पर नहीं होती थी, जिससे उसकी फ़सल अक्सर खराब हो जाती थी। फिर भी, वह ईमानदारी से मेहनत करता और भगवान से प्रार्थना करता कि उसके कठिन परिश्रम का फल मिले।


रामू के पास एक पड़ोसी था- हरि, जो बहुत आलसी था। हरि को मेहनत करना पसंद नहीं था। वह हमेशा आसान रास्ता ढूँढने की कोशिश करता।  


एक दिन हरि ने रामू से कहा, "तुम इतने कड़ी मेहनत क्यों करते हो? यह ज़मीन तो सूखी है, इससे कुछ हासिल नहीं होगा। तुम अपने समय को व्यर्थ कर रहे हो!"


रामू मुस्कराया और जवाब दिया, "मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। अगर मैं ईमानदारी से काम करता रहूँ, तो एक दिन जरूर इसका फल मिलेगा।"


हरि ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया और आराम से दिन बिताने लगा।


गर्मियों के दिनों में गाँव में भीषण सूखा पड़ा। हरि का खेत पूरी तरह सूख चुका था, क्योंकि उसने कभी ठीक से देखभाल नहीं की थी। उसके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा।  


वहीं रामू, जो नियमित रूप से अपने खेत की देखभाल करता था, पानी जमा करता था और मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने के उपाय करता था, उसने अपने खेत में कुछ फसल उगाई।  


जब गाँव के लोग सूखे के कारण परेशान थे, तब रामू की मेहनत रंग लाई। उसने अपने फसल का एक हिस्सा गाँव के लोगों में बाँट दिया, जिससे कई भूखे लोगों को राहत मिली।  


हरि को अब एहसास हुआ कि मेहनत करना कितना जरूरी है। उसने रामू के पास जाकर कहा, "मुझे अपनी गलती समझ आ गई। मैं अब आलसी नहीं रहूँगा और ईमानदारी से मेहनत करूँगा!"


रामू ने उसे प्रोत्साहित किया और मदद की, जिससे हरि भी मेहनती किसान बन गया।  


शिक्षा

यह कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत और ईमानदारी का फल देर-सवेर जरूर मिलता है। जीवन में सफलता पाने के लिए केवल भाग्य पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि निरंतर परिश्रम करना ही असली कुंजी है।

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